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Friday, 7 November 2008

बेटा पैदा करने के लिए कोई दबाव नहीं, फिर भी एक माँ ने तीन बेटियों को मार डाला

एक बेटा पैदा करने की चाहत में उड़ीसा के पुरुषोत्तम गांव की एक 31 वर्षीया महिला शुभद्रा दास ने 5 नवम्बर को अपनी 7 वर्षीय बेटी पद्मिनी को नींद में ही घर के पिछवाड़े में बने तालाब में ले जाकर डूबो दिया। इसी तरह उसने अपनी दूसरी बेटी 4 वर्षीया सुमित्रा को भी मार डाला। जब पुलिस को तलाब से दो बच्चियों की लाश मिली, तो उसने शुभद्रा से पूछताछ की। पूछताछ के दौरान शुभद्रा ने इस बात का खुलासा किया कि, कुछ हफ्ते पहले ही उसने अपनी तीसरी नौ महीने की बच्ची का गला घोंटकर हत्या की है। चौंकाने वाली बात यह है कि शुभद्रा ने ये बात स्वीकार की, उसने अवसाद और परेशानी में ऐसा अमानवीय काम किया।  अवसाद से घिरी शुभद्रा ने खुद को भी मारना चाहा, लेकिन वो जिंदा बच गई। शुभद्रा ने कहा कि, “मैंने अपनी तीनों बेटियों को मारने के बाद खुद भी आत्महत्या करने की कोशिश की। लेकिन इसके बावजूद मैं जिंदा बच गई।” पुलिस का कहना है कि शुभद्रा दास पर अपने पति या फिर ससुराल वालों की तरफ से बेटा पैदा करने के लिए कोई दबाव नहीं था।

सीएनएन-आईबीएन पर जजाति करण के अनुसार केन्द्रपाड़ा के उप-प्रभागीय पुलिस अधिकारी जयदेव सारंगी ने कहा कि, “जांच के बाद हमें मालूम चला कि शुभद्रा को इस बात का मलाल था कि बेटा न होने की वजह से उसके परिवार में अंतिम संस्कार कोई नहीं कर पाएगा, और इसी बात से वह काफी परेशान थी।”  सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस तरह की हत्याएं धार्मिक मान्यताओं के चलते होती है। ऐसे ही एक सामाजिक कार्यकर्ता दीप्ति रंजन दास ने कहा कि, “हमारे यहां ‘पिंड दान’ जैसी कई प्रथाएं हैं जिसे केवल एक बेटा ही सम्पन्न कर सकता है, और ऐसी प्रथाएं ही लोगों को ऐसे अमानवीय कार्य करने के लिए मजबूर करती है।



जजाति करण का आगे कहना है 'शायद यही वजह है कि शुभ्रदा दास जैसी महिलाएं अपनी तीन बेटियों की हत्या करने के बाद भी एक बूंद आंसू नहीं बहाती हैं।'

3 comments:

संगीता पुरी said...

आज के युग में ऐसी घटनाएं !!

दिनेशराय द्विवेदी said...

अभी देश में धर्म नाम से अंधविश्वास और सामाजिक प्रथाएँ अपने क्रूरतम रूप में बड़ी मात्रा में मौजूद हैं। और यही उस का परिणाम है।

रंजना said...

घोर अमानवीय.......निन्दनीय.....परन्तु क्रूर सत्य है यह...यह प्रकरण प्रकाश में आ गई तो लोगों ने जाना,परन्तु देहातों के लिए आज भी यह कोई बहुत बड़ी बात नही.